सोमवार, २७ जून, २०११

आसमंत धुंदसा , हवेतही नशा निळी

आसमंत धुंदसा , हवेतही नशा निळी
चहू दिशाच सांगती , कथा सुनीच आगळी

वसंत ताटवे जणू, दुरून साद घालती
कितीक वाट पाहुनी, पुसट रंग सांडती
लहर सांगते जणू, प्रीतीची व्यथा खुळी ||१||

शमूनही शमेचना, तृषा कशी हि ना कळे
विसावला तरी कसा जीव हा तळमळे
विरह आणि संगती, जशी कि ऊन सावली ||२||

क्षणास शोधतो जणू, फिरून काळ हा पुन्हा
क्षणैक प्रीत तर कधी विरह देऊनी मना
निघून काळ चालला, करून खूण राऊळी ||३||
- (भावानुवाद ) प्राजू



फज़ा भी है जवाँ जवाँ, हवा भी है रवाँ रवाँ
सुना रहा है ये समा, सुनी सुनी सी दास्ताँ ॥धृ॥

पुकारते हैं दूर से, वो काफ़िले बहार के
बिखर गए हैं रंग से किसी के इंतज़ार के
लहर-लहर के होँठ पर वफ़ा की हैं कहानीयाँ ॥१॥

बुझी मगर बुझी नहीं, न जाने कैसी प्यास है ?
करार दिल से आज भी, न दूर है न पास है
ये खेल धूप-छाँव का, ये कुरबतें, ये दुरीयाँ ॥२॥

हर एक पल को ढूँढता, हर एक पल चला गया
हर एक पल फ़िराक़ का, हर एक पल विसाल का
हरेक पल गुज़र गया बना के दिल पे इक निशाँ ॥३॥
मूळ रचना : हसन कमाल

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