शुक्रवार, १३ मे, २०११

रंग अवघा बदलून जाईल..

रंग अवघा बदलून जाईल
घुंगट थोडा कर बाजूला
धुंदी सारी उतरून जाईल
लडखडता मग कोणी नुरला

जवळी माझ्या असताना तू
'अंतकाळ' मम थांबून राहिल
माझ्यासोबत पाहून तुजला
मृत्यूचे मत बदलून जाईल

जळून गेले माझे जीवन
तू जळावे, न मंजूर होईल
नको वेदना पुसूस माझी
जीवन तुझेही करपून जाईल

फ़ूल खुडावे अलगद ऐसे
चाहूलही ना यावी वनी
बाग न बहरे, जर खुडण्याचे
भय कळीच्या दाटे मनी
-प्राजु

मुळ रचना : अनवर मिर्जापुरी
भावानुवाद : प्राजु

मुळ रचना :
रुख़ से परदा उठा दे ज़रा साक़िया
बस अभी रंग-ए-महफ़िल बदल जायेगा
है जो बेहोश वो होश में आयेगा
गिरनेवाला जो है वो संभल जायेगा

तुम तसल्ली ना दो सिर्फ़ बैठे रहो
वक़्त कुछ मेरे मरने का टल जायेगा
क्या ये कम है मसीहा के रहने ही से
मौत का भी इरादा बदल जायेगा

मेरा दामन तो जल ही चुका है मग़र
आँच तुम पर भी आये गंवारा नहीं
मेरे आँसू ना पोंछो ख़ुदा के लिये
वरना दामन तुम्हारा भी जल जायेगा

फूल कुछ इस तरह तोड़ ऐ बाग़बाँ
शाख़ हिलने ना पाये ना आवाज़ हो
वरना गुलशन पे रौनक ना फ़िर आयेगी
हर कली का दिल जो दहल जायेगा

- अनवर मिर्ज़ापुरी

Page copy protected against web site content infringement by Copyscape