बुधवार, १८ मे, २०११

नको पुसू तू,...... वेडा तुझा!

मराठी कविता समुहाच्या 'कविता एक अनुवाद अनेक' या उपक्रमांतर्गत अनुवादित रचना.

माझ्या गझला-कविता सार्‍या तुझीच रूपे असती
कधी सूर तक्रारीचा, कधी प्रीत गीते असती
आज वाहतो तुजला सारे क्षण मी सोनेरी
आठवतील तुज आयुष्याच्या एका वळणावरी
लेऊन दुलई श्वासांची, मग शब्द जागे होती
एकांती त्या परीकथांची रास रंगवून जाती

अनेक होती गहिरी दु:खे तू दिलेल्या जखमांपरी
शोधत होती अनेक दु:खे आयुष्याच्या वाटेवरी
घेऊन आलो रेत व्यथेची, घालण्याला तव पदरी
तव स्पर्शाने रंगुन जाते व्यथा माझी मेंदीपरी
तप्त निखारे भिजून जाती, हसती घाव फ़ुलापरी

तुझीच आहेत फ़ुले नि जखमा, अस्तित्वाच्या आठवणी
तुलाच घे ही दु:ख विराणी आणिक माझी सुरेल गाणी
अवघा काळ तो तुझाच आता जगलो जे मी क्षणोक्षणी
कोणी होता एक कवी जो गाई वेड्यावाणी
राजा जैसा थाट तयाचा जीवन फ़किरावाणी
रूसली आस मनाची त्याच्या, रूसल्या नशिबावाणी

नको पुसू तू, वेडा तुझा! कधीच हरवून गेला गं
नसेल भले फ़रहाद तरी तो पहाडाशी लढला गं!
वार करूनी स्वत:वरी तो जखमी होऊन पडला गं!

- (भावानुवाद) प्राजु


ये मेरी गज़लें, ये मेरी नज़्में, तमाम तेरी हिकायतें हैं
ये तज़्कीरें तेरी लुत्फ़ के हैं, ये शेर तेरी शिकायतें हैं
मैं सब तेरी नज़र कर रहा हूँ, ये उन ज़मानों की सतें हैं
जो ज़िंदगी के नए सफ़र में तुझे किसी रोज़ याद आएँ
तो एक एक हर्फ़ जी उठेगा, पहन के अन्फ़ास की कबाएँ
उदास तनहाईयों के लम्हों में नाच उठेगी ये अप्सराएँ

मुझे तेरी दर्द के अलावा भी और दुख थे, ये जानता हूँ
हज़ार ग़म थे जो ज़िंदगी की तलाश में थे, ये जानता हूँ
मुझे खबर है की तेरे आँचल में दर्द की रेत छानता हूँ
मगर हर एक बार तुझको छू कर ये रेत रंग-ए-हीना बनी है
ये ज़ख्म गुलज़र बन गए हैं, ये आहें-सोज़ाँ घटा बनी है

और अब ये सारी मता-ए-हस्ती, ये फूल, ये ज़ख्म सब तेरे हैं
ये दुख के नौहे, ये सुख के नग्में, जो कल मेरे थे, अब तेरे हैं
जो तेरी कुरबत, तेरी जुदाई में कट गए रोज़-ओ-शब तेरे हैं
वो तेरा शायर, तेरा मुग़न्नी, वो जिस की बातें अजीब सी थी
वो जिस के अंदाज़ ख़ुसरो-वाना थे और अदाएँ गरीब सी थीं
वो जिसके जिने की ख़्वाहीशें भी खुद उसके अपने नसीब सी थीं

न पुछ उसका की वो दिवाना बहूत दिनों का उजड चुका है
वो कोहकन तो नहीं था, लेकीन कडी चट्टानों से लड चुका है
वो थक चुका है और उस का तेशा उसी के सीने में गड चुका है...

- अहमद फ़राज़

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