अनंताचा खेळ..
गेला रूसुनिया | कातर सांजेला |
तेजाचा तो गोळा | लालबुंद ||
कललेली सांज | चढणारी रात |
सोडुनिया साथ | रवी गेला ||
कुशित तमाच्या | नक्षत्रे सहस्त्र |
नांदती एकत्र | चांदवर्खी ||
शशीबिंब नभी | लोभस देखणे |
धरेचे लाजणे | पाहून ते ||
चंदेरी ही रात | सावळा शृंगार |
क्षितिजाच्या पार | रवी पाही ||
वितळला राग | सोडी अहंकारा |
मागतो किनारा | नभाकडे ||
भिजली पहाट | त्याच्या आसवांत |
झाली वाटाघाट | चंद्रासवे ||
चांद परतूनी | रवीबिंब आले |
क्षितिज रंगले | केशरात ||
रोजचाच घोळ | नाही ताळमेळ |
अनंताचा खेळ | चालू राही ||
- प्राजु
वृत्त : देवद्वार छंद (ओवी वृत्त)
मात्रा : ६ + ६ + ६ +४
2 प्रतिसाद:
मस्त. सूर्यास्तापासून सूर्योदयापर्यंतचं वर्णन मस्त रेखाटलंय कवितेत. देवद्वार छंदात अगदी पर्फ़ेक्ट बसली आहे कविता.
एक सुधारणा - "सहस्र"...("सहस्त्र" नव्हे).
अनंताचा खेळ..
शशीबिंब नभी | लोभस देखणे |
धरेचे लाजणे | पाहून ते ||
चंदेरी ही रात | सावळा शृंगार |
क्षितिजाच्या पार | रवी पाही ||
अप्रतिम खुप सुंदर कल्पना आहे, वा !
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